पेडों से छन के, किरणों के रथ पे, धूप छत पे उतरी तो थी
फिर जाने क्यों वो, मेरी चौखट पे आके, ना जाने कहॉ मुड़ गयी
थोड़ी उनींदी , थोड़ी जगी सी, सुबह ने आँखें खोली तो थी
फिर जाने क्यों वो, करवट बदल के , मुह फेर के सो गयी
भीगी हुई सी, छीटे उड़ाती , बारिश ने मुझको बुलाया तो था
पर जाने क्यों वो, मुझको भिगोये बिना ही, जाके बादलों मे कहीँ छुप गयी
बन के, संवर के, चन्दा से सज के, रात घर से निकली तो थी
पर जाने क्यों वो, मुझ से मिलने से पहले, थक के कही सो गयी
यूं तो नहीं हैं कि खुशियों से मेरा, कभी मिलना हुआ ही नहीं
मगर जाने क्यों वो, जब भी मिली हैं, रुकी हैं पर ठहरी नहीं
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